
देहरादून में आज एक दिलचस्प और मार्मिक दृश्य दिखा—एक तरफ शहर का शक्तिशाली प्रशासनिक तंत्र, और दूसरी तरफ उन्हीं गलियों से रेस्क्यू किए गए भिक्षावृत्ति व बालश्रम के बच्चे। इनके बीच सेतु बनने का काम किया जिलाधिकारी सविन बंसल के बेटे मास्टर सनव बंसल ने। आठ साल का बच्चा, लेकिन काम ऐसा किया कि बड़े-बड़े समाज सुधारक भी थोड़ी देर सोच में पड़ जाएँ।
आमतौर पर “डीएम का बेटा” सुनते ही दिमाग में एक अलग ही छवि बन जाती है—गाड़ियों का काफिला, सेलिब्रेशन की चमक और बाकी सब कुछ ‘VIP स्टाइल’। लेकिन आज कहानी उलटी थी। जहाँ कई नेता और अधिकारी समाज के सबसे वंचित बच्चों के बीच फोटो खिंचवाने तक में हिचकिचाते हैं, वहाँ एक छोटा बच्चा उनके बीच जाकर केक काट रहा था। और यह वही बच्चे थे जो कुछ समय पहले तक सड़कों पर भीख मांगते, ट्रैफिक सिग्नल पर कांच साफ करते या किसी दुकान में काम करते नजर आते थे।
एक तरफ शहर का शीर्ष प्रशासन, दूसरी तरफ समाज का सबसे कमजोर वर्ग—बीच में अगर कोई खाई थी तो आज उसे एक बच्चे ने पाट दिया। यह वही काम है जो अक्सर बड़े लोग “नीति”, “स्कीम” और “अभियान” के नाम पर फाइलों में करते रहते हैं, लेकिन जमीन पर हमेशा अधूरा रह जाता है।
सनव ने कोई भाषण नहीं दिया, कोई संदेश नहीं पढ़ा, लेकिन उसका व्यवहार ही ‘संदेश’ बन गया। बच्चे केक काटते हैं, यह सामान्य बात है। लेकिन भिक्षावृत्ति और बालश्रम से निकाले गए बच्चों के साथ बैठकर उसी केक को खुशी और बराबरी से बांटना—यह असामान्य है, और इसलिए प्रभावशाली भी।
यह दृश्य उन लोगों पर एक सकारात्मक तंज भी है जो पद की ऊँचाई से समाज को देखते हैं, लेकिन छूना नहीं चाहते। आज एक 8 साल के बच्चे ने दिखा दिया कि संवेदनशीलता पद पर निर्भर नहीं होती, संस्कार पर होती है। और जब डीएम का बेटा इस तरह के संस्कार दिखाए, तो यह संदेश और भी तीखा हो जाता है—कि असली ‘VIP’ वही है जो दूसरों को महत्वपूर्ण महसूस कराए।
भिक्षावृत्ति से रेस्क्यू किए गए बच्चों ने भी शायद पहली बार महसूस किया होगा कि खुशी खरीदकर नहीं, ध्यान देकर दी जाती है। और शायद आज वे समझ गए होंगे कि समाज में उनका भी स्थान है—कोई किनारे का हिस्सा नहीं, बल्कि केंद्र का हिस्सा।
सार यही है कि आज सिर्फ सनव का जन्मदिन नहीं था, आज संवेदनशीलता का भी जन्मदिन था। और यह जन्मदिन मनाया एक ऐसे बच्चे ने, जिसने अपने पिता के पद की चमक नहीं, बल्कि अपने घर के संस्कार की रोशनी दिखाई।






